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Wednesday, January 30, 2013

सिंह लग्न और नीलम :

सिंह लग्न और नीलम :
सिंह लग्न में शनि छठे और सप्तम भाव का अधिपति होता है इसके अतिरिक्त यह लग्नाधिपति सूर्य का शत्रु ग्रह है ! इसिलए इस लग्न के लिए शनि ग्रह को शुभ ग्रह नहीं मन गया है! इस लग्न के जातक को कभी भी नीलम धारण नहीं करना चाहिए इसे धारण करने से लाभ की अपेक्षा हानि सक सामना करना पड़ेगा! इसे धारण करने से शत्रु रोग और कर्ज में वृधि करता है और वैवाहिक जीवन को भी कलहपूर्ण बनता है ! जातक को झूठे मुकदमो का सामना करना पड़ता है!

Tuesday, January 29, 2013

मिथुन लग्न और नीलम :

मिथुन लग्न और नीलम :
मिथुन लग्न में शनि अस्ठं एवं नवम भाव का अधिपति होता है इसलिए शनि ग्रह को अत्यंत शुभ ग्रह मन गया है इसके अतिरिक्त यह लग्नेश बुध का भी अभिन्न मित्र होता है ! इस लग्न के जातक को आजीवन धारण करना चाहिए ! इसे धारण करने से जातक का भाग्य उदय होता है और जातक के समस्त रुके हुए कार्य संपन्न होते है! इसे धारण करने से कार्य व्यवसाय में भी लाभ प्राप्त होता है! इसे यदि लग्नेश बुध के रत्न पन्ने के साथ धारण किया जाये तो अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है !

Monday, January 28, 2013

वृष लग्न और नीलम :

वृष लग्न और नीलम :
वृष लग्न में शनि नवम और दशम भाव का अधिपति होता है और इसके अतिरिक्त यह लग्नेश शुक्र का भी अभिन्न मित्र भी है ! इसलिए इस लग्न का जातक के लिए शनि को अत्यंत शुभ ग्रह मन गया है ! इस लग्न के जातक को आजीवन नीलम धारण करना चाहिए ! इसे धारण करने से जातक को पिता और राज्य पक्ष से लाभ प्राप्त
होता है और जातक को कार्य व्यसाय में भी तरक्की होती है ! इसके अलावा जातक को लाटरी शेयर से भी लाभ प्राप्त होता है जातक को  आध्यात्म के क्षेत्र  में सफलता प्राप्त होती है ! यदि इसे लग्नेश शुक्र के रत्न हीरे अथवा पन्ने के साथ धारण किया जाये तो जातक को अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है !

Saturday, January 26, 2013

वृष लग्न और मोती :

वृष लग्न और मोती :
वृष लग्न में चंद्रमा तीसरे भाव का अधिपति होता है! इसके अतिरिक्त इसकी लग्नेश शुक्र से भी सम्बन्ध मत्रिपूर्ण नहीं है ! इसलिए इस लग्न के जातक को चन्द्र शुभ नहीं मन गया है! इस लग्न के जातक को कभी भी मोती धारण नहीं करना चाहिए! इसे धारण करने के लाभ की अपेक्षा हानि का सामना करना पड़ता है ! इसे धारण करने का भी बंधू से विवाद गले में तकलीफ पार्टनरशिप में हानि, उत्तर पूर्व दिशा से नुकसान होता है और जातक को मानसिक रोग होने का भी भय रहता है! जातक की स्मरण शक्ति में कमी हो जाती है !

वृष लग्न और मनीक्य :

वृष लग्न और मनीक्य :
वृष लग्न में सूर्य चतुर्थ भाव का अधिपति होता है इस लग्न के लिए सूर्य को के तठस्थ ग्रह मन गया है लकिन इसके लग्नेश शुक्र के साथ शातुता होने के कारन इसको शुभ नहीं मन गया है ! इसलिए ऐसे जातक को कभी भी माणिक्य धारण नहीं करना नहीं चाहिए! इसे धारण करने से जातक को हानि का सामना करना पड़ता है !

Wednesday, January 23, 2013

मेष लग्न और नीलम:

मेष लग्न और नीलम:
मेष लग्न में शनि दशम और वेकदाश भाव का अधिपति होता है एवम इसके अतिरिक्त इसके लग्नाधिपति मंगल के साथ भी सत्रुता है इसलिए इस लग्न का लिए शनि को शुभ ग्रह नहीं मन गया है ! इस लग्न के जातक को कभी भी नीलम धारण नहीं करना चाहिए! इसे धारण करने से जातक को लाभ की अपेक्षा हानि का सामना करना पड़ेगा ! इसे धारण करने से राज्य, पिता पक्ष का हानि, कार्य व्यवसाय में हानि, विशेष दक्षिण दिशा से हानि, आया के स्रोतों में कमी, भाई बन्धुओ से विवाद का सामना करना पड़ेगा! इसके अतिरिक्त जातक को हाथ और गले में रोग होने का भी भय रहेगा !

मेष लग्न और हीरा :

मेष लग्न में शुक्र दुसरे एवम सप्तम भाव का अधिपति होता है, इसलिए इस लग्न के जातक लिए शुक्र को शुभ ग्रह नहीं मन गया है! इसके अतिरिक्त यह लग्नेश मंगल का भी शत्रु  है! इसलिए इस लग्न के जातक को कभी भी हीरा धारण नहीं करना चाहिए! इसे धारण करने से लाभ की अपेक्षा हानि का सामना करने पड़ेगा! इसे धारण करने से जातक को धन हानि, शारीरिक क्षति का सामना, गुप्त रोग, गृहस्त्र सुख में बाधा, लाटरी से हानि, शुगर जैसे रोगों का सामना करना पड़ेगा!

Tuesday, January 22, 2013

Mesh lagn aur Pukhraj

मेष लग्न और पुखराज :
मेष लग्न में गुरु नवम और बारहवे भाव का अधिपति होता है और यह लग्नेश मंगल का भी अभिन्न मित्र है! इसलिए गुरु को इस लग्न के जातक के लिए शुभ मन जाता है ! इस लग्न के जातक को पुखराज धारण करने से जातक का भाग्योदय होता है इसके अतिरिक्त जातक के सभी उर्के हुए कार्य संपन्न होते है उसे समाज में मान सम्मान प्राप्त होता  है उसे लाटरी शेयर का लाभ प्राप्त होता है उसके सभी मांगलिक कार्य सम्पूर्ण होता है ! ऐसे जातक को जन्म स्थान से दक्षिण पूर्व दिशा से विशेष लाभ होता है !

Mesh lagan aur munga

मेष लग्न और पन्ना :
मेष लग्न में बुध तर्तीय और छठम भाव का अधिपति होता है और इसके अतिरिक्त यह लग्नेश का भी शत्रु होता है, इस्लिलिये इस लग्न के लिए बुध ग्रह को अशुभ मन गया है!  इसीलिए इस लग्न के जातक को मूंगा कभी भी धारण नहीं करना चाहिए, इसे धारण करने से लाभ की अपेक्षा हानि का सामना करना पड़ता है ! इसे धारण कने से आत्मविश्वास की कमी, रक्त विकार , भाई बंधू से विवाद, गले में तकलीफ, शत्रु  और कर्ज से परेशानी का सामना करता है!

Monday, January 21, 2013

Mesh lagn aur munga

मेष लग्न और मूंगा:
मेष लग्न में मंगल लग्न भाव का अधिपति होता है इसलिये इस लग्न के जातक को हमेशा मूंगा धारण करना चाहिए ! इस लग्न में मंगल जातक के सम्पूर्ण जीवन का प्रतिनिधित्व करता है ! इसे धारण करने से आयु, ,बुद्धि, स्वास्थ्य, उन्नति, यस एवं सम्मान प्रदान करनेवाला होता है ! मुंगे के साथ यदि माणिक्य और पुखराज के साथ धारण किया जाये तो जातक के लिए लाभप्रद होता है !

Sunday, January 20, 2013

Mesh lagn aur manakya

मेष लग्न एवं रत्न धारण :
मेष लग्न में सूर्य पंचामधिपति होने के कारन अत्यंत शुभ ग्रह मन जाता है ! यह लग्नेश मंगल का भी मित्र है ! अत इस लग्न के जातक को हमेशा रूबी धारण करना चाहिए! इसे धारण करने से जातक को अचानक आर्थिक, शिक्षा,  एवं   प्रसिद्धी प्राप्त है !   इसके अतिरिक्त जातक को  मानसिक  शांति प्राप्त होती है  तथा मानसिक रोगों से भी मुक्ति होती है ! सूर्य की महादशा में व्यक्ति को विशेष लाभ होती है !

Santan pratibandhak yog

संतान प्रतिबंधक योग:
1- तृतीय भाव का अधिपति और चंद्रमा केंद्र या त्रिकोण भावों में स्थित हो तो जरक को संतान सुख में बाधा होती है !
2- लग्न में मांगल, आठवें शनि और पंचम भाव में शनि हो तो भी जातक को संतान सुख में बाधा होती है !
3- बुध और लग्न भाव का अधिपति ये दोनों लग्न के अलावा केंद्र स्थानों में हो तो भी संतान सुख में बाधा होती है !
4- लग्न, अस्थम एवम बारहवें भाव में पापग्रह हो तो संतान सुख में बाधा उत्पन्न होती है !
5- सप्तम भाव में शुक्र, दशवें भाव में चन्द्रमा, एवं सप्तम भाव में शनि या मंगल हो तो संतान सुख में बाधा होती है !
6- तीसरे भाव का अधिपति 1/2/3/5 वें भाव में स्थित हो तथा शुभ से युत या द्रस्त  हो तो ऐसे जातक को संतान सुख में बाधा होती है !

Saturday, January 19, 2013

Bahu vivah yog

बहु विवाह योग:
1- चन्द्र एवं शुक्र बलि होकर किसी भी भाव में एकसाथ स्थित हो तो ऐसे जातक के बहुत पत्नियाँ होगी !
2- लग्नेश उच्च अथवा स्वराशीगत केंद्र भावों में स्थित हो तो ऐसे जातक के बहुत विवाह होते है!
3- लग्न में एक ग्रह उच्च राशी में स्थित हो तो भी ऐसे जातक से बहुत विवाह होते है !
4- लग्नेश और चतुर्थ भाव का अधिपति केन्द्रीय भावों में स्थित हो तो भी ऐसे जातक के बहुत से विवाह होते है !
5- शनि सप्तमेश हो तथा वह पापग्रह से युत हो तो ऐसे जातक से बहुत से विवाह होते है !
6- बाली शुक्र की द्रष्टि सप्तम भाव पर हो तो भी ऐसे जातक से बहुत से विवाह होते है !

Do vivah yot

11- शुक्र नीच अथवा शत्रु राशी के नवांस में हो अथवा अस्त ग्रह के नवांस में पापग्रह से पीड़ित हो तो ऐसे जातक से दो विवाह होते है !
12- कलत्रकारक शुक्र पापग्रह के साथ स्थित हो अथवा हो तो ऐसे जातक के दो विवाह होते है !
13- दुसरे भाव् का अधिपति छठवे भाव में हो तथा सप्तम भाव में पापग्रह स्थित हो तो ऐसे जातक के दो विवाह होते है !

do vivah yot

दो विवाह योग :
6. शुक्र और बुध यदि दशम भाव में स्थित हो तथा दशम भाव अर्ताथ चन्द्रमा से सप्तम भाव में शनि स्थित हो तो जातक के दो विवाह होते है !
7- आठवे भाव का अधिपति लग्न अथवा सप्तम भाव में स्थित हो तो जातक के दो विवाह होते है !
8- लग्न भाव का अधिपति अस्थम  अथवा बहर्वे भाव में स्थित हो तो जातक के दो विवाह होते है !
9- सप्तम भाव में पापग्रह हो तो भी जातक के दो विवाह होते है!
10- सप्तम भाव का अधिपति नीच या शत्रु  राशी में अशुभ ग्रहों से युत अथवा सप्तम भाव में पापग्रह स्थित हो तो ऐसे जातक से दो विवाह होते है !

Thursday, January 17, 2013

दो विवाह योग :
1- यदि मंगल सूर्य सप्तम भाव में स्थित हो तो ऐसे जातक के दो विवाह होते है !
2- यदि लग्न भाव का अधिपति लग्न भाव में स्थित हो और लग्नाधिपति अपने नवांश में हो तो ऐसे जातक से दो पत्नी होती है !
3- यदि लग्न भाव का अधिपति एवम सप्तम भाव का अधिपति एकसाथ स्थित हो तो ऐसे जातक के दो विवाह होते है !
4- यदि लग्नाधिपति औरी सप्तामाधिपति केंद्र भाव में स्थित हो!
5- धनु और मीन लग्न में बुध और गुरु सप्तम भाव में और लग्न भाव में स्थित हो!
6-  शुक्र और बुध यदि दशम, सप्तम और दशम भव में स्थित हो तो ऐसे जातक के दो विवाह होते है !

Tuesday, January 15, 2013

एक विवाह योग :
यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में निम्नलिखित योग में से कोई एक योग विद्यमान हो तो ऐसा जातक जीवन में एकबार ही विवाह करता है ! यदि जातक पुरुष हो तो एक पत्नीव्रत धर्म का पालन करेगा और यदि जातक स्त्री हो तो वह पतिव्रत  का पालन करेगी:
1- यदि गुरु एवम शुक्र या मंगल के  नवांश  तो  में
5- यदि सप्तम भाव में ग्रह तो उस स्थान की राशी की हो दिशा हो या सप्तम भाव पर जिन ग्रहों की द्रष्टि पड़ती हो उन ग्रहों की राशिस्थ दिशाओ में कन्या का घर होता है! यदि स्थिर राशी हो तो कन्या का वर के घर से विशेष दूर नहीं होगा और चार राशी हो तो वर के घर से कन्या का घर दूर होगा!

Vivah ki disha ka vichar

विवाह की दिशा का विचार :
ज्योतिष परिप्रेक्ष में  विवाह का विचार करना एक अत्यंत आवश्यक एवम  महत्तवपूर्ण विषय है ! क्योंकि विवाह के विचार के लिए विवाह संस्कार करना कठिन हो जाता है ! ज्योतिषशास्त्र  विवाहयोग दिशा का ज्ञान कराकर जातक के मत पिता का कार्य और भी आसन हो जाता है ! ज्योतिषशास्त्र में विवाह की दिशा के निर्धारण के तीये निम्नलिखित बिन्दुओं  का सहारा लिया जाता है :
1- शुक्र से सप्तमेश की दिशा हो उसी दिशा में वर या वधु का घर होता है !
2- जातक से चंद्रमा और सप्तमेश जिस दिशा में स्थित हो इनमे से जो बलवान हो उसी दिशा में विवाह संपन्न होता है !
3- चंद्रमा सप्तम हो तथा चन्द्र राशी का स्वामी मंगल या अन्य पाप ग्रहों से द्रष्ट हो अथवा पापग्रह चन्द्र राशी से त्रिकोण में हो तो जातक का विवाह जन्मस्थान में न होकर जन्मस्थान से दूर होता है !
4- सप्तमेश, सप्तम भाव में स्थित अ और शुक्र बलवान हो, उसकी स्थित की दिशा में जातक का ससुरक होगा !

Monday, January 14, 2013

शनि का लग्न अथवा सप्तम भाव में स्थित होना अथवा इन भावों पर शनि की 3,7,10 वी पूर्ण द्रष्टि होने की स्थिति में जातक के दो विवाह होते है ! यदि जन्मकुंडली में शनि शुक्र पर शनि की 3,7,10 वी पूर्ण द्रष्टि हो तो जातक के यौन संबंधो में वृधि होगी अथवा उसके जीवनसाथी के यौन सम्बन्ध उसके अतिरिक्त अन्यो से भी होते है ! जिसका परिणाम यह होता है की ऐसे स्त्री अथवा पुरुष या तो स्वयं अपने जीवनसाथी को त्याग देता है अथवा  द्वारा त्याग दिया जाता है ! शनि की  सप्तम भाव पर पूर्ण द्रष्टि वैवाहिक विलम्ब करती है! शनि की  द्रष्टि यदि सूर्य पर हो तो ऐसे स्त्री पुरुष अपने जीवनसाथी का लड़-झगड़ कर वैवाहिक जीवन को नरक बना लेते है ! शनि की यह स्थित सुखद नहीं होती! समस्त जीवन एक दीर्घ दू स्वप्न बन जाता है !

Kalahpurn vaivahik jeevan

 जातक के 23 वें साल के 25 वें  साल में चारित्रिक दोष होने की प्रबल सम्भावनाये होती है ! जातक विवाह के बाद भी अनेक यौन संबंधों में रूचि रखता है ! जो की वैवाहिक कलह की सूचनाये देता है !  मेष, सिंह अथवा धनु राशिगत सूर्य लग्न अथवा सप्तम भाव में स्थित हो तो जातक का विवाह विलं से होता है  तथा एक से अधिक विवाह होते है लेकिन वैवाहिक जीवन कलहपूर्ण होकर वैवाहिक विधेद  को जन्म देता है !

Saturday, January 12, 2013

कलहपूर्ण वैवाहिक जीवन :

कलहपूर्ण वैवाहिक जीवन :
लग्न कुंडली से सप्तम भाव में सूर्य की स्थिति जातक के वैवाहिक जीवन को कलहपूर्ण बनती है! ऐसे जातक चाहे वह स्त्री हो या पुरुष उनका विवाह कितना ही शिक्षित एवं स्म्रद्ध्शाली परिवार में हुआ हो, उनका वैवाहिक जीवन अत्यंत कलहपूर्ण होता है ! ऐसे जातक का विवाह विलम्ब से तो होता ही है लकिन साथ ही साथ जातक विपरीत योनि के प्रति अनादर और वस्नाकूल रहस्यात्मकता से आप्तावित रहता है ! यदि जातक की  कुंडली में शुक्र अशुभ भावो का अधिपति होकर दुःख स्थान में स्थित हो तो जातक चारित्रिक दोष के कारन वैवाहिक जीवन को कलहपूर्ण बना लेता है !

Saptam bhaw me ketu

यदि किसी जातक कुंडली में केतु अपनी  राशी में स्थित हो तो से जातक का वैवाहिक जीवन सुखी रहता है! ऐसे जातक का विवाह पश्चिम दिशा में संपन्न होता है! ऐसे जातक की पत्नी इञ्जेनिअर और कानून की जानकर होती है! यदि केतु अपनी नीच राशी अथवा शत्रु राशी में स्थित हो तो ऐसे जातक को तलाक का सामना करना पढता है!

सप्तम भाव में राहु :

सप्तम भाव में राहु :
यदि किसी जातक की कुंडली में सप्तम भाव में राहु स्थित हो अथवा सप्तम भाव पर पूरण द्रष्टि ढाल रहा हो तो ऐसे जातक की पत्नी कुरूप, दुष्ट स्वभाव्युक्त, क्रोधी, कुशीला, कृपन,  दुश्चरित्र तथा तिरस्कृत होती है! राहु प्रथक्तावादी ग्रह होने के कारन यह जातक के वैवाहिक संबंधो को तलाक तक भी पहुंचा देती है! सप्तम  भाव में राहु की यह स्थति जातक की पत्नी को आत्म् हत्या करने को मजबूर करती है! तथा दुर्घटना से भी  भय उत्पन्न करती है! इस स्थिति में जातक का विवाह भी विलम्ब से होता है!

सप्तम भाव में शनि :

सप्तम भाव में शनि :
यदि शनि औपनि नीच, शत्रु राशी  स्थित हो तो ऐसे जातक को वैवाहिक विलम्ब का सामना करना पढता है! ऐसे जातक की पत्नी रोगिणी, कुरूप , कांतिहीन कपटी और निन्दित कार्य करनेवाली सुख से हीन होती है !   ऐसी स्त्री पति द्वारा त्याग दी जाती है ! अथवा वह पति का अलग हो जाती हैद्ज्स्मो ! शनि की यह स्थति से जातक को वैवाहिक पार्थक्य का सामना करना पड़ता है! यदि शनि के साथ सोई शुभ ग्रह स्थित हो तो इन अशुभ प्रभावों में कमी हो जाती है! किन्तु समस्या की कमाप्ती नहीं होती है!ऐसे स्थिति में भी जातक के वैवाहिक जीवन को सुखी नहीं कहा जा सकता है! जातक को वैवाहिक संबंधो को लेकर कानून कचहरी का भी सामना पद जाता है!

Thursday, January 10, 2013

सप्तम भाव में शनि :

सप्तम भाव में शनि :
यदि किसी जातक की कुंडली में शनि सप्तम भाव में अपनी उच्च स्वराशी अथवा मित्र राशी का हो तो ऐसे जातक को वैवाहिक विलम्ब का सामना करना पड़ता है ! इसके अलावा एके जातक का विवाह पश्चिम दिशा में होता है ! ऐसे जातक की पत्नी इंजिनियर, कंप्यूटर और कानून विषय में पारंगत होती है ! यदि कुंडली के सप्तम भाव में शनि अपनी नीच राशी, शत्रु राशी पर स्थित हो तो ऐसे जातक के दो विवाह संपन्न होते है ! ऐसे जातक की पत्नी शारीरिक द्रष्टि से कमजोर होती है और वह मानसिकरूप से भी कमजोर होती है !

शुक्र सप्तम भाव में :

शुक्र सप्तम भाव में :
यदि किसी जातक की कुंडली में शुक्र सप्तम  भाव में अपनी उच्च राशी, मित्र राशी, स्वराशी में स्थित हो अथवा सप्तम भाव पर शुभ प्रभाव दे रहा हो तो ऐसे जातक की स्त्री चतुर, धनि, शीलवती, स्वच्ताप्रिय तथा पतिव्रता होती है ! सप्तम भाव का करक ग्रह शुक्र होने के कारन यह सप्तम भाव के फलों में वृधि करता है! यदि सप्तम भाव पर अशुभ ग्रहों की द्रष्टि हो अथवा स्थित हो यह जातक के वैवाहिक जीवन में बाधा उत्पन्न करती है!
सप्तम भाव में गुरु
यदि किसी जातक के सप्तम भाव में गुरु अपनी मित्र, स्वराशी अथवा उच्च राशी पर स्थितर हो तो ऐसे जातक का वैवाहिक जीवन शुभ होता है! ऐसे जातक की पत्नी शिक्षित सुसील अवम गुणवान होती है ! वह पत्नी अपने पति की आज्ञा का पालन करनेवाली होती है !
सप्तम भाव में बुध
यदि किसी जातक का सप्तम भाव में बुध अपनी उच्च राशी कन्या अथवा मित्र राशी मिथुन पह स्थित हो तो ऐसे जातक की पत्नी शिक्षित, सम्मानित भाषण कला में प्रवीण तथा मधुर वाणी से युक्त होती है ! वह पति से अनुकूल आचरण करने वाली होती है ! बुध   एक राजसी ग्रह होने के कारन जातक के वैवाहिक जीवन को  सुख्पुरण  बनता है ! यदि बुध ग्रह पापग्रह के साथ  इस भाव में स्थित हो अथवा पापग्रह की द्रष्टि से युक्त हो तो तलाक भी हो जाता है ! सप्तम भाव में राहु की स्थति जातक की पत्नीको आत्म  हत्या  करने को मजबूर कर देती है तथा दुर्घटना का भी भय बना रहता है ! इस स्थिति में जातक का विवाह भी विलम्ब से होता है तथा यह निम्न विजातीय यौन कम्बंधो को कायम करवा देती है!

Wednesday, January 9, 2013

mercury

Mercury planets and merriage life:




If mercury planet situated in seventh house in ucch seign vergo, own rashi jemeny or vergo its very good for meriage life. In this condition mercury makes good meerriage life or life partner. Life partner releated with education, music, law and lecturer department

सप्तम भाव में मंगल :

सप्तम भाव में मंगल :
यदि सप्तम भाव में मंगल अपनी नीच राशी, शत्रु राशी अध्व पापग्रह के साथ स्थित हो तो जातक को वैविहिक जीवन अत्यंत कलहपूर्ण तथा दुःख से परिपूरन हो जाता है ! ऐसे जातक का विवाह वैविहिक आयु समाप्त हो जाने के बाद होता है ! जातक से दो विवाह होते है ! मंगल अग्नि तत्त्व प्रधान होने के कारन एके जातक की पत्नी स्वभाव से उग्र, क्रोधी होती है ! वह प्रतेक बात पर पति से झगडा करनेवाली होती है ! मंगल एक प्रथक्तावादी ग्रह होना के कारन वैवाहिक रिश्तों को तलक तक भी पहुंचा देता है !

Saptam bhaw me chandrma ka phaladesh

2- चन्द्रमा :
सप्तम भावस्थ चन्द्रमा अपनी उच्च राशी। स्वराशी  अथवा मित्र राशी पर स्थित हो अथवा सप्तम भाव पर शुभ द्रष्टि हो तो ऐसे जातक का वैवाहिक जीवन अत्यंत श्रेष्ठ होता है ! ऐसे जातक की पत्नी मधुभाशिनी, विवेकी तथा धनि होती है ! वह पति से अनुकूल चलने वाली सुंदर तथा कला की जानकर होती है ! ऐसी स्त्री स्वभाव से नम्र तथा विनीत होती है ! यदि सप्तम भाव में चंद्रमा क्षीण हो अथवा नीच राशी पर स्थित हो अथवा सप्तम भाव पर अशुभ द्रष्टि हो तो ऐसे जातक का विवाह अपने से निम्न स्तर की स्त्री के होता है ! ऐसे जातक का वैविहिक जीवन दुखी होता है ! उसकी  पत्नी रोगिणी, चंचल, अभामानी तथा पति सुख से वंचित रहती है !

सप्तम भाव में विभिन्न ग्रहों की स्थति एवं द्रष्टि फल :

सप्तम भाव में विभिन्न ग्रहों की स्थति एवं द्रष्टि फल :
प्रत्येक ग्रह सप्तम भाव में स्थित होकर अलग अलग फल प्रदान करता है ! यह फल सम्पूर्ण रागानुसार चक्र को प्रभावित करता है !
1- सूर्य : सूर्य सप्तम भाव में स्थित हो अथवा इस भाव पर द्रष्टि डालता  हो तो ऐसे व्यक्ति को वैवाहिक जीवन में बाधा उत्पन्न होती है! सप्तम भाव में सूर्य के प्रभाव से व्यक्ति के विवाह में विलम्ब होगा! ऐसे व्यक्ति की पत्नी  के जीवन को खतरा होता है तथा व्यक्ति का दूसरा विवाह भी संपन्न हो जाता है ! सूर्य एक प्रथाक्त्वादी ग्रह होता है! इस कारन यह व्यक्ति के वैविहिक संबंधों में कटुता उत्पन्न करता है तथा पति पत्नी माँ तलाक होने होने का प्रबल योग होता है ! सूर्य की यह स्थिति व्यक्ति की पत्नी  को क्रोधी, कृतघ्न एवम त्रिस्क्रत  बनती है! ऐसे व्यक्ति को गृहस्थ सुख का अभाव  पाया जाता है !
      

Tuesday, January 8, 2013

Surya aur rog

8- व्रशिच्क राशी में सूर्य से उत्पन्न रोग
इस राशी में सूर्य होने से जातक की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृधि होती है ! व्यक्ति को कंठ, दिल, पित्तज रोग एवम पेट के सम्बन्धित तोग होने का भय तहत है !
9- धनु राशी में सूर्य होने से व्यक्ति को स्नायु सम्बन्धित रोग होने का खतरा रहता है !
10- मकर राशी में सूर्य होने से व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक शक्ति का अभाव पाया जाता है ! इसके प्रभाव से व्यक्ति का शारीर दुर्बल रहता है ! संधिवात, कोश्बद्धता, मानसिक रोग अवम उदास रहना आदि रोग होता है !
11- कुम्भ राशी में सूर्य होने से मानसिक चिंता के कारन उत्पन्न होने वाले रोग जैसे उच्च रक्त चाप, नेत्र रोग, रक्त  संचार में विकार आदि रोग होने का भय रहता है !
12- मीन राशी में सूर्य होने से शारीर कमजोर रहता है! रक्तविकार पाचनशक्ति में कमजोर रहता है!  
सूर्य एवं रोग
1- सूर्य यदि  वर्ष राशी में स्थित हो तो शरीर मजबूत होता है
2- मिथुन राशी का सूर्य गोचर से 6,8,12 में से किसी भी भाव पर आ जाये तो स्नायु, रक्त विकार अवम छाती से सम्बंधित विकार उत्पन होतें हैं
3- कर्क राशी में सूर्य होने के कारन शरीर दुर्बल होता है! इस राशी में सूर्य होने से कब्ज की शिकायत रहती है!
4- सिंह राशी में सूर्य होने से व्यक्ति स्थूल शरीर को होने से मुक्त हो जाता है! सिंह राशी में सूर्य होने से व्यक्ति और्वेद दवा  से लाभ होता है
5- कन्या राशी में सूर्य होने से व्यक्ति को पेट से  सम्बन्धित रोग होने का भया  रहता है
6- तुला राशी में सूर्य होने से कमर में दर्द, पेट में विकार, मधुमेह, गुर्दे से सम्बंधित रोग होते है

Monday, January 7, 2013

Jyotish shastra me prashan vichar

ज्योतिष शास्त्र में प्रश्न विचार
सामान्यता एक समय में एक ही प्रश्न का ही विचार करना चाहिए लकिन यदि कोई व्यक्ति अपनी परस्थितियों से लाचार होकर एक ही समय या एक ही लग्न में अनेक प्रशन करे तो उसके विविध प्रश्नों का विचार इक प्रकार प्रकट करना चाहिए
1- प्रथम प्रशन का विचार प्रशन लग्न के करना चाहिए
2- दुसरे प्रशन का विचार चन्द्रमा की स्थित राशी को लग्न मानकर करना चाहिए
3- तीसरे प्रशन का विचार सूर्य स्थित राशी को लग्न मानकर करना चाहिए
4- चतुर्थ प्रशन का विचार गुरु स्थित राशी को लग्न मानकर करना चाहिए इ
5- पंचम प्रशन का विचार बुध और शुक्र में से जो बलवान ग्रह हो वह जिस भाव में स्थित हो उस भाव मे स्थित राशी को लग्न मानकर करना चाहिए

Tuesday, January 1, 2013

ज्योतिष शास्त्र में अकस्मात् धन प्राप्ति योग:
1- यदि दुसरे भाव का अधिपति चतुर्थ भाव का अधिपति शुभ ग्रह की राशी में स्थित हो!
2- यदि पंचम भाव में चन्द्रमा पर शुक्र ग्रह की पूर्ण द्रष्टि पद रही हो!
3- एकादश भाव का अधिपति एवम द्वितीय भावों के स्वामी चतुर्थ भावगत हो !
4- लगेनेश और द्वितीयेश आपस में एकदूसरे के भाव में हों