नक्षत्र विचार
अस्वीनी : राशी चक्र में ० अंश से लेकर १३-२० अंश तक का क्षेत्र अस्वनी नक्षत्र से अंतर्गत मन जाता है! इसका नाम दो अश्वारोहित कुमारो के नामi से हिन्दू वैदिक शास्त्रों में रखा गया है, जिन्हें अश्वनी कुमारो के नाम से जाना जाता है! इस नक्षत्र में तारो की संख्या तीन है! ग्रीक पुरानो में कास्टर एवं पलाक्स के नाम से इस नक्षत्र को अश्वनी नाम दिया गया है! इस नक्षत्र का अधिदेवता पुरुष है जिन्हें अश्वनी राजकुमार कहा गया है!
दत्तक पुत्र योग:
१- पंचम भाव में मंगल और शनि स्थित हो और लग्नाधिपति को बुध की राशी अर्थात मिथुन एवं कन्या राशी में स्थित होना चाहिये तथा उस ग्रह से युक्त अथवा प्रभावित हो तो ऐसा जातक दत्तक पुत्र को प्राप्त करता है!
२- सप्तम भाव का स्वामी एकादश भाव में स्थित हो और पंचामधिपति शुभ ग्रहों से युक्त हो और पंचम भाव में मंगल और शनि स्थित हो, तो ऐसा जातक दत्तक पुत्र को प्राप्त करता है!
अस्वीनी : राशी चक्र में ० अंश से लेकर १३-२० अंश तक का क्षेत्र अस्वनी नक्षत्र से अंतर्गत मन जाता है! इसका नाम दो अश्वारोहित कुमारो के नामi से हिन्दू वैदिक शास्त्रों में रखा गया है, जिन्हें अश्वनी कुमारो के नाम से जाना जाता है! इस नक्षत्र में तारो की संख्या तीन है! ग्रीक पुरानो में कास्टर एवं पलाक्स के नाम से इस नक्षत्र को अश्वनी नाम दिया गया है! इस नक्षत्र का अधिदेवता पुरुष है जिन्हें अश्वनी राजकुमार कहा गया है!
दत्तक पुत्र योग:
१- पंचम भाव में मंगल और शनि स्थित हो और लग्नाधिपति को बुध की राशी अर्थात मिथुन एवं कन्या राशी में स्थित होना चाहिये तथा उस ग्रह से युक्त अथवा प्रभावित हो तो ऐसा जातक दत्तक पुत्र को प्राप्त करता है!
२- सप्तम भाव का स्वामी एकादश भाव में स्थित हो और पंचामधिपति शुभ ग्रहों से युक्त हो और पंचम भाव में मंगल और शनि स्थित हो, तो ऐसा जातक दत्तक पुत्र को प्राप्त करता है!
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