सप्तम भाव में मंगल :
यदि सप्तम भाव में मंगल अपनी नीच राशी, शत्रु राशी
अध्व पापग्रह के साथ स्थित हो तो जातक को वैविहिक जीवन अत्यंत कलहपूर्ण
तथा दुःख से परिपूरन हो जाता है ! ऐसे जातक का विवाह वैविहिक आयु समाप्त हो
जाने के बाद होता है ! जातक से दो विवाह होते है ! मंगल अग्नि तत्त्व
प्रधान होने के कारन एके जातक की पत्नी स्वभाव से उग्र, क्रोधी होती है !
वह प्रतेक बात पर पति से झगडा करनेवाली होती है ! मंगल एक प्रथक्तावादी
ग्रह होना के कारन वैवाहिक रिश्तों को तलक तक भी पहुंचा देता है !
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