विवाह की दिशा का विचार :
ज्योतिष परिप्रेक्ष में विवाह का विचार करना एक अत्यंत आवश्यक एवम महत्तवपूर्ण विषय है ! क्योंकि विवाह के विचार के लिए विवाह संस्कार करना कठिन हो जाता है ! ज्योतिषशास्त्र विवाहयोग दिशा का ज्ञान कराकर जातक के मत पिता का कार्य और भी आसन हो जाता है ! ज्योतिषशास्त्र में विवाह की दिशा के निर्धारण के तीये निम्नलिखित बिन्दुओं का सहारा लिया जाता है :
1- शुक्र से सप्तमेश की दिशा हो उसी दिशा में वर या वधु का घर होता है !
2- जातक से चंद्रमा और सप्तमेश जिस दिशा में स्थित हो इनमे से जो बलवान हो उसी दिशा में विवाह संपन्न होता है !
3- चंद्रमा सप्तम हो तथा चन्द्र राशी का स्वामी मंगल या अन्य पाप ग्रहों से द्रष्ट हो अथवा पापग्रह चन्द्र राशी से त्रिकोण में हो तो जातक का विवाह जन्मस्थान में न होकर जन्मस्थान से दूर होता है !
4- सप्तमेश, सप्तम भाव में स्थित अ और शुक्र बलवान हो, उसकी स्थित की दिशा में जातक का ससुरक होगा !
ज्योतिष परिप्रेक्ष में विवाह का विचार करना एक अत्यंत आवश्यक एवम महत्तवपूर्ण विषय है ! क्योंकि विवाह के विचार के लिए विवाह संस्कार करना कठिन हो जाता है ! ज्योतिषशास्त्र विवाहयोग दिशा का ज्ञान कराकर जातक के मत पिता का कार्य और भी आसन हो जाता है ! ज्योतिषशास्त्र में विवाह की दिशा के निर्धारण के तीये निम्नलिखित बिन्दुओं का सहारा लिया जाता है :
1- शुक्र से सप्तमेश की दिशा हो उसी दिशा में वर या वधु का घर होता है !
2- जातक से चंद्रमा और सप्तमेश जिस दिशा में स्थित हो इनमे से जो बलवान हो उसी दिशा में विवाह संपन्न होता है !
3- चंद्रमा सप्तम हो तथा चन्द्र राशी का स्वामी मंगल या अन्य पाप ग्रहों से द्रष्ट हो अथवा पापग्रह चन्द्र राशी से त्रिकोण में हो तो जातक का विवाह जन्मस्थान में न होकर जन्मस्थान से दूर होता है !
4- सप्तमेश, सप्तम भाव में स्थित अ और शुक्र बलवान हो, उसकी स्थित की दिशा में जातक का ससुरक होगा !
No comments:
Post a Comment